पर्वत - यात्रा के मार्ग

                सम्मेदशिखर की यात्रा के लिए ऊपर जाने के दो मार्ग हैं - एक तो नीमिया घाट होकर और दूसरा मधुवन की ओर से। नीमिया घाट पर्वत के दक्षिण की ओर है। यहाँ एक डाक बंगला, जैन धर्मशाला बनी हुई है। इधर से जाने पर पर्वत की वंदना उलटी पड़ती है और सबसे पहले पार्श्वनाथ टोंक पड़ती है। नीमियाघाट की ओर से सम्मेदशिखर की यात्रा करने में ६ मील की चढ़ाई पड़ती है। ऊपर टोंकों की वंदना ६ मील और वापसी ६ मील । चढ़ाई में ६ मील की यात्रा करनी होती है ।

                नीमियाघाट की दिगम्बर जैन धर्मशाला और मंदिर बीसपंथी कोठी के अन्तर्गत है । पालगंज का दिगम्बर जैन मंदिर भी बीसपंथी कोठी के अन्तर्गत है । इसका जीर्णोद्धार लगभग १५० वर्ष पहले क्षुल्लक धर्मचंद्र जी ने कराया था। पहले सम्मेदशिखर की यात्रा के लिए यात्री पालगंज होकर आते थे। जब पालगंज के राजा का अभिषेक होता था, उस समय दिगम्बर जैन प्रतिमा वहाँ विराजमान करके उसका अभिषेक शुद्धि की जाती थी ।

                मधुवन की ओर से भी कुल मिलाकर १८ मील (२७ किमी.) की यात्रा पड़ती है। किन्तु अधिकांश यात्री मधुवन की ओर से ही यात्रा करते हैं। इधर से यात्रा करने में कई सुविधाएँ हैं। सबसे बड़ी सुविधा तो यह है कि इधर अन्य अनेक यात्रियों का साथ मिल जाता है और इतनी लम्बी यात्रा अन्य साथियों के कारण सुगम बन जाती है, इसके विपरीत नीमिया घाट की ओर से यात्रा करने में यात्री को प्रायः अकेले ही चढ़ना-उतरना पड़ता है। इससे यात्रा दुरूह मालूम पड़ने लगती है।

                २७ किमी. की यह लम्बी यात्रा किशोर, युवक, वृद्ध, स्त्री-पुरुष सभी तीर्थंकरों का जय घोष करते, स्तुति - विनती पढ़ते आनन्दपूर्वक कर लेते हैं। सांस फूल जाती है किन्तु मन में क्षण-भर को भी खिन्नता के भाव नहीं आते। बल्कि अपनी धार्मिक श्रद्धा, उल्लास, उत्साह और प्रकृति की सुषमा में विभोर होकर यात्री यात्रा पूरी करके जब वापस अपने डेरे पर लौटता है तो उसे अनुभव होता है कि भगवान की भक्ति में अद्भुत शक्ति है, वरना इतनी लम्बी यात्रा कैसे संभव थी। अब पर्वत पर पूरा रास्ता पक्का बन जाने से यात्रा अत्यन्त सुगम हो गई है।